गुरुवार, 17 जून 2021

एस्पिरेंट्स वेब सीरीज का रिव्यू

TVF यानी The Viral fever एक मीडिया ग्रुप है जिसने भारत में सबसे पहले OTT series बनाने का गौरव हासिल किया है। जब भी OTT पर लो बजट में हाई क्वालिटी कंटेंट की बात होती है तब TVF का नाम ज़रूर लिया जाता है।

कुछ ऐसी ही हाई एक्सपेक्टेशन और कंटेंट क्वालिटी के साथ मात्र 5 एपिसोड की एस्पिरेंट्स सीरीज का आख़िरी एपिसोड अभी हाल ही में यूट्यूब पर देखा गया है।


कहानी आईएस अधिकारी अभिलाष (नवीन कस्तूरिया) से शुरु होती है जो दिल्ली बस अड्डे पर बोतल को किस तरह से फेंकना चाहिए, ये आम लोगों को बता रहा है। अगले ही सीन में श्वेतकेतु यानी एसके सर (अभिलाष थपलियाल) अपनी अकादमी के नये भर्ती छात्रों को upsc क्लियर करने के गुर सिखा रहे हैं। यहाँ एक अच्छी मोटिवेशनल स्पीच है। अब यहाँ तीसरे लड़के गुरी उर्फ़ गुरप्रीत (शिवांकित सिंह परिहार) की एंट्री होती है जो शादी करने वाला है।

फ़्लैशबैक 2012 में ये तीनों बहुत अच्छे दोस्त होते हैं, तीनों upsc की तैयारी कर रहे होते हैं और तीन में से दो का, अभिलाष और श्वेतकेतु का ये आख़िरी अटेम्प्ट होता है। अब इन पाँच में से चार एपिसोड में इन तीनों (ख़ासकर अभिलाष) की ज़िन्दगी के प्रति एप्रोच, लेडी लक, बैकअप को लेकर स्ट्रगल और फेलियर्स और आपसी झगड़े की कहानी बयां होती है। 

इस कहानी की सबसे बड़ी ख़ूबी ये है कि इससे हर दूसरा स्टूडेंट और हर तीसरा आदमी कनेक्ट हो सकता है। लेकिन सबसे बड़ी ख़ामी ये है कि कहानी पूरी होते हुए भी अधूरी लगती है। प्री-मेन्स और लाइफ में लाइफ कितनी इम्पोर्टेन्ट है, ये बहुत अच्छे से बताया गया है और बहुत चतुराई से ये भी समझाने की कोशिश की गयी है कि प्री-मेन्स भी पार्ट ऑफ लाइफ ही हैं।

डायरेक्शन और स्क्रीनप्ले


डायरेक्शन और स्क्रीनप्ले की बात करते हैं। इसमें क्रिएटर/लेखक अरुणभ कुमार, श्रेयांश पांडे और दीपेश हैं, वहीं डायरेक्शन अपूर्व सिंह कर्की के हाथ में है। अपूर्व काफी समय से TVF से जुड़े हुए हैं। उनका डायरेक्शन बेजोड़ है। नज़रिया बदलने से पहले चश्मा चेंज होना हो या ज़िन्दगी की अप्रोच चेंज करने के लिए सड़क के गड्ढे भरना, एक से बढ़कर एक मेटाफॉर क्रिएट किए हैं। हालाँकि इसका क्रेडिट राइटर्स को भी मिलना चाहिए। स्क्रीनप्ले बहुत टाइट बहुत कण्ट्रोल में है। लव स्टोरी वाला एंगल अच्छा डायरेक्ट तो हुआ ही है, साथ बैकग्राउंड में ‘हमने तुमको देखा, तुमने हमको...’ भी बहुत परफेक्ट बैठता है। फिर आधार कार्ड योजना का मनमोहन सरकार में ज़िक्र करना कहानी को और रेअस्लिस्टिक बनाता है।

डायलॉग्स 


डायलॉग्स की बात करूँ तो ढेर सारे इमोशनल और मोटिवेशनल डायलॉग्स के अलावा दो एक ह्यूमरस डायलॉग्स भी हैं। मुलाहजा फरमाइए –

“मुझे आईएएस इसलिए बनना है क्योंकि मैं चेंज ला सकता हूँ, मुझे चेंज लाना है”

“तूने उसकी आँखें देखीं?” – “हाँ तो तुम भी आँखें ही देखो न चश्में में काहे घुसे हो?”

“और हमारा क्या? यहाँ दिल चाहता है चल रही है? मैं सैफ अली खान हूँ?”
"मुखर्जी नगर के रिलेशनशिप यही छूट जाते है"

एक्टिंग

नवीन पहले भी TVF पिचर्स में अपनी एक्टिंग का जलवा दिखा चुके हैं। यहाँ वो पहले से 21 नज़र आए हैं। अभिलाष ने समा बाँध दिया है। उनके सारे डायलॉग (उपरोक्त मिलाकर) हँसने और सोचने के लिए एक साथ मजबूर कर देते हैं। शिवांकित अपने करैक्टर में जमे हैं। चाय टपरी पर उनकी मोटिवेशनल स्पीच बढ़िया है। नमिता दुबे भी अच्छी लगी हैं, उनका करैक्टर और बढ़ सकता था। मकान मालिक बने कुलजीत सिंह ज़बरदस्त कलाकार हैं, नोटिस हुए बगैर रह ही नहीं सकते हैं। नीतू झांझी ने भी एक सीन में बाजी मारी है।

नुपुर नागपाल का रोल ही लाउड था, उन्होंने ओवरलाउड प्ले किया है, अच्छा है।

सनी हिंदुजा इस सीरीज के श्रीकृष्ण हैं। हर एपिसोड में उनकी ज़रा सी प्रेजेंस भी जान डालने वाली साबित होती है। उनकी लास्ट स्पीच ज़बरदस्त है, पूरी सीरीज का सार है।

तुषार मलिक का बैकग्राउंड म्यूजिक बहुत अच्छा है। दोनों गाने और ख़ासकर ‘मोहभंग पिया’ का रिप्राइज़ वर्शन बहुत अच्छा बना है।

जॉर्ज जॉन और अर्जुन कुकरेती ने सिनेमटाग्रफी में भी बहुत मेहनत की है। चाय के प्याले को दिखाकर सार समझाना हो या नवीन के भीगते वक़्त बैकग्राउंड में खड़े सनी हिंदुजा को ब्लर करना, हर शॉट ज़बरदस्त है।

कुलमिलाकर एस्पिरेंट्स में आपको एक स्टूडेंट लाइफ से जुड़ी फाइनेंशियल छोड़कर हर तकलीफ, हर समस्या मिल जायेगी। कुछ एक के समाधान भी मिल जायेंगे। ज़िन्दगी के प्रति नज़रिया चेंज होने के भी चांसेज़ हैं। लेकिन अगर आपका फोकस है कि ‘प्री और मेन्स क्लियर करने के लिए कैसी पढ़ाई करनी होती है’ ये दिखाया जायेगा, तो आप निराश हो सकते हैं। पढ़ना क्या है और कैसे पढ़ना है इसके लिए स्पोंसर्स ने अनअकैडमी app बनाया है जिसका जमकर प्रचार आप इस सीरीज़ में देख सकते हैं। हाँ, ज़िन्दगी के इम्तेहान में कैसे पास होना है, इसका हल शायद इस सीरीज में मिल सकता है

एक वाइटल कमी जो मुझे नज़र आई वो ये है कि – अंत हड़बड़ी में करने की बजाए करैक्टर अभिलाष के फ्लैशबैक के कुछ मिनट, इसपर फोकस किए जा सकते थे कि जब वो फेल हुआ तो उसे संभालने के लिए दोस्त थे, लेकिन जब वो पास हुआ तब ख़ुशी शेयर करने के लिए कोई भी नहीं था। 

रेटिंग – 9/10*

मंगलवार, 25 अगस्त 2020

सुर्ती का सफर

सुर्ती एक सफर
सुर्ती कहो ,खैनी कहो,तम्बाकू कहो या प्यार से बुद्धिवर्धक  इसके तमाम नाम है।ये अपने अनेकों नाम से नही  बल्कि अपने काम और गुणों से  चाहने वालों के दिलो पर राज करती है । ये समरसता का पाठ पढ़ाने के साथ-साथ आपसी प्रेम व भाई चारा बढ़ाती है।अंजान लोगों से बात करने की प्रेरणा देती है।ऊंच- नीच , जात- पात से दूर अपने दुःख दर्द बाटने का एक माध्यम  है।ये हमारी अकड़ को खत्म कर किसी के सामने हाथ फैलाने को मजबूर कर देती है तो किसी को एक चुटकी दे कर गौरव की अनुभूति भी कराती है ।इसके बारे में वही समझ सकता है जो इसका स्वाद चखा हो।
मै इसे सुर्ती ही कहता हूँ।
सुर्ती खाना शुरु करने से पहले लोग इसे और इसके सेवन करने वालो को नही समझ सकते ,इसको समझने के लिए आपको इसका सेवन करना पड़ेगा नहीं तो आप यही कहेंगे
राजा पिए गांजा , तम्बाकू पिए चोर।
खैनी खाये चूतिया ,थूके चारों ओर।।
‌बात करते है उस देवदूत तुल्य गुरु की जो आपको सुर्ती खाने के लिए प्रेरित करता है ,हाँ जी आप उसे नही ढूंढ सकते वही आपकी प्रतिभा को पहचान कर आपको ढूंढता है जिस प्रकार आप रॉ को नही ढूंढते है आपमें क़ाबिलियत होती है तो रॉ ही आपको ढूंढता है।यदि आप परेशान ,  तनाव  या काम का बोझ लिए है या किसी अन्य नशा को छोड़ना चाहते है या फिर आप मेरी तरह कुछ नई कोशिश करना चाहते है तो आपको जरुरत है एक सहारे की, एक साथी की,  तभी आपके गुरु की इंट्री होती है और वो इस अद्भुत चीज की तारीफ के पूल बाँधकर  इस जड़ी -बूटी को चूने में रगड़ कर आपको देता है।  खाने का तरीका बताता है। आप गुरु की बात को ध्यान से सुनकर सुर्ती को एक चुटकी में दबा के अपने ऊपर वाले या नीचे वाले होठ और दांत के मंसूडो में इसे दबाते है ।
‌इसका असर एक मिनट के अंदर ही दिखने लगता हैं मुंह में तेजी से लार बनने लगता है। कुछ तीख कसाव जैसा  गले में जाने लगता  है ।आपका जी मचलाने के साथ सर घूमने लगता है ,ऐसा प्रतीत होता है मानो आपको ऊल्टी होगी और बहुत लोग तो ऊल्टी कर भी देते है। आपके गुरु आपको संभालते है, पानी , कुल्ला कराते है। आपको एक जगह बैठने या लेटने को कहते है।उपचार के कुछ क्षण बाद आप  सही हो जाते है । इस अनुभव के बाद कुछ डरपोक लोग इसे दोबारा खाने से मना कर देते है। पर असली शेर वही होता है जो कहता है गुरु, ये कमाल की चीज है ।
‌शुरुवाती दौर में इसका सेवन करने पर आपके सामने भिन्न- भिन्न प्रकार की बाधाएं आती है। पर सभी बधाओं को हराकर सुर्ती खाने वाला महापुरुष एक श्रेष्ठ या पेशेवर  सुरतीबाज या खैनीबाज बन जाता है ।
‌प्रारम्भ में इसके सेवन से बार- बार मसूड़े तथा होठ के अंदर का चमड़ा कट जाता है ।जहाँ सुर्ती दबाया जाता है ,वह होंठ फूले होते है जिसकी वजह से पकडे जाने का खतरा बना रहता है।
‌अगर कोई सुर्ती खाने वाला ये कहे कि उसने चोरी नहीं की तो वो झूठ बोल रहा है इससे सुर्ती का अपमान होता है ।जब भी सुर्ती खाने का ताव चढ़ता है, तब सुर्ती किसी भी कीमत में चाहिए वो चाहे दादा जी के चुनौटी से चुराया जाय या पिताजी की थैली से या किसी अन्य से  ।दादा जी के पास बैठ कर उनका पैर दबाते -दबाते धीरे से उनकी चुनौटी में से सुर्ती निकालकर तुरंत वहा से हट जाना और किसी विशेष अड्डे पर जाकर छुपके से इसको खाना एक खतरों का खिलाडी ही कर सकता है।जब भी घर का कोई  व्यक्ति जो पहले से ही खैनी खाता हो ,उसके चुनौटी छोड़ के कही जाते ही पूरे घर वालो के सामने   सुर्ती चुरा लेना आँखों से काजल चुराने जैसा है
‌जैसे ही किसी अन्य सुर्ती खाने वाले को ये पता चलता है कि आपने इस मैदान में नई-नई इंट्री मारी है तो उसकी आपसे एक अलग ही संबंध स्थापित हो जाता है और खेल इशारों का शुरु होता है जैसे ही आप अपने साथी को देखते है और आँख ही आँख आपसी वार्तालाप  हो जाता है और आपका साथी भरे सभा में खैनी बनाकर धीरे से आपको देता है और आप मुह पोछने के बहाने से सुर्ती को अपने होठों के बीच दबा लेते है। किसी को भनक तक नही लगती। आप अपने इस क्रान्तिकारिक काम को कर के मन ही मन खुद को शहंशाह समझने लगते है।इशारों  का खेल कुछ दिनों तक चलता रहता है कभी आँखों से तो कभी होठ को जीभ से उठा के तो कभी हाथ से तो कभी कोड भाषा में।फिर दौर आता है किसी अंजान से मांगने का ,जब भी आप किसी अंजान सुर्ती धारी को देखते है तो आप उससे खुल के सुर्ती मांगते है और वो भी बडे गर्व के साथ आपको सुर्ती देता है और आपसी संवाद शुरु हो जाता है  संवाद किसी भी मुद्दे पर हो सकता है मौसम ,रास्ते ,राजनीती ,समाज के गुण या अवगुण किसी पर भी ।
‌बात धीरे धीरे फैलने लगती है कि फलाने नया-नया सुर्ती खा रहे है ।जब बात किसी सुर्ती खाने वाले को पता चलती है तो ज्यादा भार नही लेता बल्कि आपको अपना साथी समझने लगता है पर जो नही खाते है वही इसको आग की तरह गांव में या मुहल्ले में फैला देते है बात जब छोटे बच्चों तक पहुचती है तो वो आपको ताली पीट के या हथेली पे अंगूठा रगड़ के चिढ़ाते है । धीरे धीरे भनक घर तक पहुचती है जब घर वाले आपसे पूछते है तो आप झूठी कसम खाकर उनको मना लेते है पर ज्यादा दिन के लिए नही ,जब घर वालो को विश्वास हो जाता है कि आप सुर्ती खाते  है तो आपको लाइसेंस मिल जाता है वो भी लर्निंग वाला ।आप अब माँ से ,पिता जी से, दादा जी से मतलब कुछ लोगो के सामने सुर्ती नही खाते ।समय बीतता जाता है और एक ऐसा दिन आता है कि आप अपनी चुनैटी रख लेते है और घर से सदस्य भी आपसे सुर्ती मांग सकते है और आप भी उनसे मांग सकते है । धीरे धीरे आपके दांत काले हो जाते है और लोग आपको देख के ही बता देते है कि आप सुर्ती खाते है ......
‌                                                    अभिषेक तिवारी ☺️☺️

बाल बाल बचे

  बचपन में डकैती तथा छिनैती  की बहुत सारी सच्ची कहानियां सुना था...  वो अलग बात है कि सुनाने वाला उसमें “मिर्च मसाला” लगाकर सुनाता था...  ऐस...