भाग एक
एक प्रेम कहानी (विलेन का लव)
क्लास 10th का पहला दिन……..
क्लास में सभी लोग छुट्टियों की बातें कर रहे थे... कौन कहां गया, क्या क्या किया, किसको क्या मिला.... इस सभी बातो पर सभी दोस्त बैठकर चर्चा कर रहे थे....
पर मेरी निगाहें किसी को ढूंढ रही थी. उसे देखे 45 दिन हो गए थें... दिमाग में तरह-तरह के ख्याल आ रहे थे... कहीं उसका एडमिशन दूसरे स्कूल में तो नहीं हो गया होगा....फिर खुद को समझाने लगता नहीं नहीं 9th यहाँ से पढ़ी है तो 10th भी यहीं से पढेगी....
मेरे दोस्त मुझसे बातें कर रहे थे, कुछ कह रहे थे.... पर उनकी बातें मुझे पल्ले नहीं पड़ रही थी.. क्योंकि मेरा ध्यान तो कहीं और था... उसे देखने के लिए मेरी व्याकुलता बढती जा रही थी....
अचानक पूरा क्लास शांत हो गया..... क्लास के सभी लोग उसे देख रहे थे.... वो अपनी सहेलियों से मिल रही थी...उसी चंचलता से अपनी सहेलियों से बातें कर रही थी... धीरे-धीरे क्लास सामान्य हो गया…..मेरी आंखें उस पर टिकी की टिकी रह गई...
पूरे दिन मैं उसे देखता रहा..... पर उसने मुझे एक बार भी नहीं देखा.... खैर उसका मुझे ना देखना कोई नई बात नहीं था.... जब वह पहली बार 8th क्लास में आई थी तब से ही मैं उसे देखा करता था... मैं क्या पूरा क्लास उसे देखा करता था... अंतर बस इतना था कि कुछ लोग नोट्स लेने के बहाने या कुछ पूछने के बहाने उसे बात यह कर लिया करते थे.... और मैं उससे कभी बात नहीं करता था..... केवल चुप चुप के देखा करता था...कई लोगों ने उसे अपने दिल की बात बताने की कोशिश भी की पर दाल नहीं गली....
मैं प्रतिदिन सज सवार के स्कूल जाता और उसे देखा करता..... इस बार भी लगभग 15 दिनों तक मैं उसे देखता रहा.... जैसा कि मैं पिछले 2 सालों से देखते आ था....मजे की बात यह है कि ये बात मैंने अपने दोस्तों को भी नहीं बताया था.....एकदम ख़ुफ़िया प्यार था... जब भी कोई दोस्त उसके बारे में कुछ बताता तो मैं ऐसे रिएक्ट करता जैसे मुझे इन सब चीजो से कोई फर्क नहीं पड़ता......
धीरे-धीरे मुझे लगने लगा कि ये साल भी मुझे उसे देख देख कर ही बिताना पड़ेगा....प्रतेक साल 15 अगस्त के दिन विद्यालय में भव्य आयोजन हुआ करता था.... जिसमें वो गाना गाने वाली थी.....वहीं होने वाले नाटक में मुझे विलेन का किरदार मिला था...
प्रभात नाम का एक लड़का था जो क्लास में सबसे तेज था..... गाना हो, डांस हो, खेल हो, पढाई हो हर चीज में औवल था...स्कूल के सभी टीचर उसे बहुत मानते थे....आप सोच रहे होंगे की उसके बारे में क्यों बता रहा हूँ...तो जबाब है वो भी गाना गाने वाला था...
रिहल्सल चालू हो गया....वो दोनों साथ ही गाने की प्रेक्टिस किया करते थे.....और हम लोगो की प्रेक्टिस बगल वाली क्लास में हुवा करती थी....जब भी मैं अपना विलेन वाली प्रेक्टिस करने के लिए तैयार होता तभी उधर से उन लोगो का गाना सुनाई देने लगता और मैं खुद को सच में विलेन समझने लगता और किरदार को जिवंत कर देता.....सबको लगता की बहुत अच्छा कर रहन हूँ पर उनको क्या पता कि चोट कही और से लग रहा है...
प्रेक्टिस के दैरान उन दोनों की नजदीकियां बढती गई....और मैं समझ गया की लास्ट में विलेन मारा ही जाता है... खैर ऐसे ही प्रेक्टिस पूरी हो गई.....
15 अगस्त के दिन मेकप वाला सबको तैयार कर रहा था... लडकियों को दुसरे रूम में मेकप वगैरा हो रहा था..मुझे एक खुखार लुटेरे का किरदार निभाना था...मुझे काले कपड़े पहनाया गया और बड़ी बड़ी मुछे लगाई गई.... और एक लम्बा कला टिका लगाया गया... साथ ही एक नकली रायफल भी दिया गया.....
लगभग सभी लोग तैयार हो गए थे.... अभी मेरे टीम के कुछ लोगो को तैयार किया जा रहा था.... मैं दरवाजे के पास बैठे उसके बारे में सोच रहा था तभी सर बोले आप लोग स्टेज के बगल वाले कमरे में चले....सब लोग अपना अपना सामान ले के चल दिए...
मुझे उसको देखने की बचैनी थी इसलिए मैं अपना रायफल ले के जल्दी से स्टेज वाले रूम के पास पहुच गया....मैंने दरवाजा बजाय और दरवाजा उसी ने खोला और मुझे देखते ही वो जोर से चिल्लाई........सब लोग दौड़ के आये, मैडम भी आई... सभी लोग उससे पूछने लगे क्या हुवा क्या हुवा... किसी ने उसे पानी दिया... वो पानी पी के मेरे ओर अंगुली दिखा क बोली इनको देख के डर गई थी... सभी लोग हसने लगे.... और मैं रूम में लगे सीसे में खुद को देखा...... फिर मैं समझ गया उसका डरना सही था... मैं खुद को ही खुखार लग रहा था...
सबसे पहला गाना उसका और प्रभात का था.... संचालक महोदय दोनों के नाम का अलाउंस किया...वो लाल रंग का ड्रेस पहन राखी थी अब उसे देखने के बाद मेरी धडकने बढ़ने लगी...मै अपना सारा डायलाक भूलने लगा...वो स्टेज पे जाने लगी और प्रभात भी पीछे से स्टेज पे गया...
वो दोनों बहुत ही अच्छा परफार्मेंस दिए.... गाना खतम होने के बाद पूरा मैदान तालियों की गडगडाहट से गूंज उठा...वो दोनों एक दुसरे का हाथ पकडे स्टेज से आये....सभी लोग उन्हें बधाई दे रहे थे... पर मेरा पूरा ध्यान उन दोनों के हाथ पे था.... मैं ईर्ष्या से जलने लगा.... वो लोग काफी देर तक एक दुसरे का हाथ पकडे रहे .....
कुछ देर बाद हम लोगों का प्ले सुरु हो गया..... मैं स्टेज पे था.... मैंने देखा प्ले देखने के लिए वो स्टेज के सामने पहली पंक्ति में प्रभात के साथ बैठी है.... वो प्रभात के कंधे को पकड के उसके कान में कुछ कह रही थी....ये देख के मेरे हृदय में ज्वालामुखी फट गया तथा मेरे अन्दर का असली विलन जाग गया....और मैं उस नकली रायफल को असली समझ के जोर से दहाड़ते हुवे अपना डायलाक बोलना सुरु किया... और तालियों से पूरा मैदान गूंज उठा.... प्ले के दौरान मैं जब जब स्टेज पे आया तब तब अपने खुखार लुक और बेहतरीन अभिनय से वहाँ बैठे लोगों के दिल में खौफ पैदा कर दिया..... पर लास्ट में बुराई का अंत होता है.... प्ले के लास्ट में नायक ने खलनायक को मार गिराया..... जब प्ले में हीरो मुझे मार रहा था तो वो बहुत खुस हो के तालियाँ बजा रही थी........
अभिषेक तिवारी
नोट (ये मेरी कहानी नहीं है ये एक काल्पनिक कथा है)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें