मंगलवार, 25 अगस्त 2020

सुर्ती का सफर

सुर्ती एक सफर
सुर्ती कहो ,खैनी कहो,तम्बाकू कहो या प्यार से बुद्धिवर्धक  इसके तमाम नाम है।ये अपने अनेकों नाम से नही  बल्कि अपने काम और गुणों से  चाहने वालों के दिलो पर राज करती है । ये समरसता का पाठ पढ़ाने के साथ-साथ आपसी प्रेम व भाई चारा बढ़ाती है।अंजान लोगों से बात करने की प्रेरणा देती है।ऊंच- नीच , जात- पात से दूर अपने दुःख दर्द बाटने का एक माध्यम  है।ये हमारी अकड़ को खत्म कर किसी के सामने हाथ फैलाने को मजबूर कर देती है तो किसी को एक चुटकी दे कर गौरव की अनुभूति भी कराती है ।इसके बारे में वही समझ सकता है जो इसका स्वाद चखा हो।
मै इसे सुर्ती ही कहता हूँ।
सुर्ती खाना शुरु करने से पहले लोग इसे और इसके सेवन करने वालो को नही समझ सकते ,इसको समझने के लिए आपको इसका सेवन करना पड़ेगा नहीं तो आप यही कहेंगे
राजा पिए गांजा , तम्बाकू पिए चोर।
खैनी खाये चूतिया ,थूके चारों ओर।।
‌बात करते है उस देवदूत तुल्य गुरु की जो आपको सुर्ती खाने के लिए प्रेरित करता है ,हाँ जी आप उसे नही ढूंढ सकते वही आपकी प्रतिभा को पहचान कर आपको ढूंढता है जिस प्रकार आप रॉ को नही ढूंढते है आपमें क़ाबिलियत होती है तो रॉ ही आपको ढूंढता है।यदि आप परेशान ,  तनाव  या काम का बोझ लिए है या किसी अन्य नशा को छोड़ना चाहते है या फिर आप मेरी तरह कुछ नई कोशिश करना चाहते है तो आपको जरुरत है एक सहारे की, एक साथी की,  तभी आपके गुरु की इंट्री होती है और वो इस अद्भुत चीज की तारीफ के पूल बाँधकर  इस जड़ी -बूटी को चूने में रगड़ कर आपको देता है।  खाने का तरीका बताता है। आप गुरु की बात को ध्यान से सुनकर सुर्ती को एक चुटकी में दबा के अपने ऊपर वाले या नीचे वाले होठ और दांत के मंसूडो में इसे दबाते है ।
‌इसका असर एक मिनट के अंदर ही दिखने लगता हैं मुंह में तेजी से लार बनने लगता है। कुछ तीख कसाव जैसा  गले में जाने लगता  है ।आपका जी मचलाने के साथ सर घूमने लगता है ,ऐसा प्रतीत होता है मानो आपको ऊल्टी होगी और बहुत लोग तो ऊल्टी कर भी देते है। आपके गुरु आपको संभालते है, पानी , कुल्ला कराते है। आपको एक जगह बैठने या लेटने को कहते है।उपचार के कुछ क्षण बाद आप  सही हो जाते है । इस अनुभव के बाद कुछ डरपोक लोग इसे दोबारा खाने से मना कर देते है। पर असली शेर वही होता है जो कहता है गुरु, ये कमाल की चीज है ।
‌शुरुवाती दौर में इसका सेवन करने पर आपके सामने भिन्न- भिन्न प्रकार की बाधाएं आती है। पर सभी बधाओं को हराकर सुर्ती खाने वाला महापुरुष एक श्रेष्ठ या पेशेवर  सुरतीबाज या खैनीबाज बन जाता है ।
‌प्रारम्भ में इसके सेवन से बार- बार मसूड़े तथा होठ के अंदर का चमड़ा कट जाता है ।जहाँ सुर्ती दबाया जाता है ,वह होंठ फूले होते है जिसकी वजह से पकडे जाने का खतरा बना रहता है।
‌अगर कोई सुर्ती खाने वाला ये कहे कि उसने चोरी नहीं की तो वो झूठ बोल रहा है इससे सुर्ती का अपमान होता है ।जब भी सुर्ती खाने का ताव चढ़ता है, तब सुर्ती किसी भी कीमत में चाहिए वो चाहे दादा जी के चुनौटी से चुराया जाय या पिताजी की थैली से या किसी अन्य से  ।दादा जी के पास बैठ कर उनका पैर दबाते -दबाते धीरे से उनकी चुनौटी में से सुर्ती निकालकर तुरंत वहा से हट जाना और किसी विशेष अड्डे पर जाकर छुपके से इसको खाना एक खतरों का खिलाडी ही कर सकता है।जब भी घर का कोई  व्यक्ति जो पहले से ही खैनी खाता हो ,उसके चुनौटी छोड़ के कही जाते ही पूरे घर वालो के सामने   सुर्ती चुरा लेना आँखों से काजल चुराने जैसा है
‌जैसे ही किसी अन्य सुर्ती खाने वाले को ये पता चलता है कि आपने इस मैदान में नई-नई इंट्री मारी है तो उसकी आपसे एक अलग ही संबंध स्थापित हो जाता है और खेल इशारों का शुरु होता है जैसे ही आप अपने साथी को देखते है और आँख ही आँख आपसी वार्तालाप  हो जाता है और आपका साथी भरे सभा में खैनी बनाकर धीरे से आपको देता है और आप मुह पोछने के बहाने से सुर्ती को अपने होठों के बीच दबा लेते है। किसी को भनक तक नही लगती। आप अपने इस क्रान्तिकारिक काम को कर के मन ही मन खुद को शहंशाह समझने लगते है।इशारों  का खेल कुछ दिनों तक चलता रहता है कभी आँखों से तो कभी होठ को जीभ से उठा के तो कभी हाथ से तो कभी कोड भाषा में।फिर दौर आता है किसी अंजान से मांगने का ,जब भी आप किसी अंजान सुर्ती धारी को देखते है तो आप उससे खुल के सुर्ती मांगते है और वो भी बडे गर्व के साथ आपको सुर्ती देता है और आपसी संवाद शुरु हो जाता है  संवाद किसी भी मुद्दे पर हो सकता है मौसम ,रास्ते ,राजनीती ,समाज के गुण या अवगुण किसी पर भी ।
‌बात धीरे धीरे फैलने लगती है कि फलाने नया-नया सुर्ती खा रहे है ।जब बात किसी सुर्ती खाने वाले को पता चलती है तो ज्यादा भार नही लेता बल्कि आपको अपना साथी समझने लगता है पर जो नही खाते है वही इसको आग की तरह गांव में या मुहल्ले में फैला देते है बात जब छोटे बच्चों तक पहुचती है तो वो आपको ताली पीट के या हथेली पे अंगूठा रगड़ के चिढ़ाते है । धीरे धीरे भनक घर तक पहुचती है जब घर वाले आपसे पूछते है तो आप झूठी कसम खाकर उनको मना लेते है पर ज्यादा दिन के लिए नही ,जब घर वालो को विश्वास हो जाता है कि आप सुर्ती खाते  है तो आपको लाइसेंस मिल जाता है वो भी लर्निंग वाला ।आप अब माँ से ,पिता जी से, दादा जी से मतलब कुछ लोगो के सामने सुर्ती नही खाते ।समय बीतता जाता है और एक ऐसा दिन आता है कि आप अपनी चुनैटी रख लेते है और घर से सदस्य भी आपसे सुर्ती मांग सकते है और आप भी उनसे मांग सकते है । धीरे धीरे आपके दांत काले हो जाते है और लोग आपको देख के ही बता देते है कि आप सुर्ती खाते है ......
‌                                                    अभिषेक तिवारी ☺️☺️

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