बात कुछ पुरानी है, उस समय मैं अल्लापुर में रहता था। हमारे गांव साइड से एक लड़का इलाहाबाद में प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने आने वाला था। चूंकी मैं पहले से ही यहां रहता था तो उनके पिताजी ने हम को फोन किया और बोला, बेटा देख लेना पहली बार जा रहा।
मैं सुबह उठकर चाय बना रहा था तभी एक मिसकॉल आया उस समय मेरे पास स्मार्ट फोन नहीं था और मोबाइल में 40 में 40 का टॉकटाइम वाला रिचार्ज कराता था।
मैंने कॉल बैक किया तो उधर से एक लड़का बोला भैया मैं भानु (काल्पनिक नाम) बोल रहा हूं, मैं सारनाथ एक्सप्रेस पकड़ लिया हूं मुझे बैठने के लिए जगह नहीं मिली है। मैंने कहा कोई बात नहीं बनारस में जगह मिल जाएगी, ज्यादा सामान तो नहीं लिए हो उसने कहा नहीं भैया.... एक बैग है और एक बोरी में गेहूं तथा चावल है। मैंने कहा बोरी किसी साइड में लगाओ और उसी पर बैठ जाओ और यहां पहुंचकर मुझे कॉल करना......।
लगभग 3:30 बजे एक मिसकॉल आया, मैंने कॉल किया उधर से आवाज आई भैया मैं स्टेशन आ गया हूं। तो मैंने कहा बाहर निकलो और चुंगी के लिए ऑटो पकड़ लो।
फिर कुछ देर बाद एक मिसकॉल आया मैंने कॉल किया तो उसने कहा मैं चुंगी आ गया हूं..... मैंने कहा किसी ऑटो वाले से बात कराओ। मैंने ऑटो वाले से कहा आलोपीबाग पानी टंकी के पास ईन्हें उतार देना....।
लड़का पहली बार इलाहबाद आ रहा था। इसलिए मैं जल्दी से उसे लेने के लिए निकल गया..... मेरे रूम से 200 से 300 मीटर की दूरी पर पानी टंकी थी।
फिर एक मिसकॉल आया मैंने उसे कॉल बैक किया तो वो बोला भैया पान टंकी के पास खड़ा हूं....... मैं जल्दी से पानी टंकी पहुंचा और चारों तरफ देखने लगा वो कहीं दिखाई नहीं दे रहा था....।
मैंने उसे कॉल किया कहां हो उसने कहा भैया पानी टंकी के दाहिनी ओर खड़े हैं...। मैं जल्दी से पानी टंकी के दाहिनी ओर गया वह वहां भी नहीं दिखा....।
मैं परेशान हो गया कि लड़का कहां चला गया फिर मैं उसे कॉल किया तो वही जवाब दिया भैया में पानी टंकी के दाहिनी ओर खड़ा हूं.....।
मैं मन ही मन सोचा शायद बायां दायां में लगता है कंफ्यूज हो गया है..... इसलिए मैंने पानी टंकी का पूरा भ्रमण किया वह कहीं नहीं दिखा।
गर्मी का दिन था और मैं पसीने से भीग गया था....। मैंने उसे फोन किया और बोला अगल-बगल किसी को फोन दो........
एक सज्जन से बात कराया उन्होंने बताया कि यह स्वर्णिका ज्वेलर्स के पास खड़ा है....। मैं गहरी सांस लिया..... और स्वर्णिका ज्वेलर्स की ओर निकल लिया..... 5 मिनट का रास्ता था।
मैं वहां गया तो देखा कि वह धूप में पीठ पर बैग टांगे हुए तथा पैर के बगल में अनाज की बोरी लिए हुए खड़ा है.......... मैं उसके पास गया और वह मुझ पर भड़क गया..... बोला भैया आप कब से मुझे पानी की टंकी के पास खड़ा करा कर पता नहीं कहां कहां ढूंढ रहे थे......। मैं चौक गया और जब ध्यान से देखा तो पता चला वह मासूम सा चेहरा बनाएं रवि मिष्ठान भंडार के पास रखी पानी टंकी के दाहिनी ओर खड़ा था......... मैं उसी टंकी से एक गिलास पानी निकाल कर मुंह धोया...... पानी पिया....... तथा उसके साथ रूम की ओर चल दिया....
अभिषेक तिवारी
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