मंगलवार, 28 सितंबर 2021

बाल बाल बचे

 


बचपन में डकैती तथा छिनैती  की बहुत सारी सच्ची कहानियां सुना था...

 वो अलग बात है कि सुनाने वाला उसमें “मिर्च मसाला” लगाकर सुनाता था...

 ऐसा लगता था गांव की ओर आने वाले हर रास्ते पर कुछ लोग छिनैती  करते हैं...

 मैं कई बार उन रास्ते से अकेले आया गया, पर मुझे कोई नहीं मिला..... लेकिन......

 बात कुछ दिन पहले की है...

 हम और हमारे कुछ साथी “काशी भ्रमण” का प्लान बनाएं..

हम लोग प्रयागराज से बनारस के लिए सुबह 4:00 बजे निकल गए...

 दो बाइक थी और हम लोग चार थे..

रास्ते में हंसी मजाक करते हुए तथा रुक रुक के चाय की चुस्की लेते हुए हम लोग 7:00 बजे तक बनारस पहुंच गए... गंगा स्नान किये.... विश्वनाथ जी का दर्शन किये... फिर काल भैरव  का दर्शन किये... फिर भोजन करने के बाद सारनाथ के लिए निकले.... 

 सारनाथ घूमते घूमते हम लोगों को शाम के पांच बज गए ... वापस आते समय दशाश्वमेध घाट पर हम लोग गंगा आरती देखें.... फिर वापस प्रयागराज की ओर निकल लिए....

शहर से बाहर निकलते निकलते 10:00 बज गए थे तभी प्लान बना कि विंध्याचल होकर प्रयागराज चला जाए.... एक बाइक पर मैं और आनंद तथा दूसरी बाइक पर अनुराग और सत्यम भैया बैठे थे...

 जब हम लोग की बाई औराई से विंध्याचल की रास्ते पर गए तो आनंद ने डकैती और छिनैती की कहानी सुनाने लगा.....

रात के 11:30 बज रहे थे.. मैं भी बहुत मजे से उसकी बातें सुन रहा था.. एकदम सुनसान रास्ता.... लग रहा था कि पूरे इलाके में हम लोगों के अलावा और कोई नहीं है...

आनंद की कहानी सुनते सुनते हम लोग  रात 12:00 बजे विंध्याचल देवी के दरबार में पहुंचे.... वहां हम लोगों ने देवी का झांकी दर्शन किया......

वहां से निकलते निकलते रात की 1:00 बज गए थे.. विंध्याचल मंदिर से लगभग 2 किलोमीटर दूरी पर एक पुलिस बूथ था.. वहां तक हम लोग साथ ही थे उसके बाद आनंद ने बाइक की स्पीड बढ़ा दी और हम लोग आगे निकल लिए.... लगभग 2 किलोमीटर आगे चलने पर बाइक की स्पीड 80+था.. 

एकदम सुनसान रास्ता..... रास्ते के दोनों और जंगल तथा झाड़ियां थी.....झींगुर की आवाज तेजी से सुनाई दे रही थी...

अचानक 100 मीटर की दूरी पर कुछ लोग दिखे.. आनंद बाइक धीमे कर दीया और 50 मीटर की दूरी पर बाइक रोक दिया.. वो लगभग 20 से 25 लोग थे.. कोई हाफ पेंट तो कोई केवल लूंगी लपेटा हुआ था...सरीर के ऊपर वाले हिस्से में कोई कपड़ा नहीं था.. कोई कोई बनियान पहने हुवे थे...

सबके हाथ में डंडे थे..... और कुछ लोग पूरे रास्ते पर खड़े हुए थे.... उसमें से कुछ लोग हम लोगों की ओर बढ़ने लगे....... तभी भीड़ में से एक आवाज आई 

इधर आ इधर आ......

हम आनंद से बोले बाइक घुमा.... घुमा जल्दी.... 

आनंद बाइक  घुमाने लगा...तभी  उसमें से दो चार लोग हम लोग के पीछे दौड़े...... 

उसमें से एक बोला..... पकड़.... पकड़..... पकड़.... पकड़...

आनंद बाइक  की स्पीड बढ़ाता गया और हम लोग वहां से निकल लिए....

 हम लोग तेजी से वापस 500 मीटर आए होंगे कि अनुराग और सत्यम भैया दिख गए...... हम लोगों को देखकर उन्होंने भी बाइक रोक दी... हम लोग जल्दी से उन्हें घूमने के लिए बोले और वो  लोग भी बाइक घुमा लिए...... तभी एक लोग और बाइक से आते हुए दिखे और हम लोग को रुकवाने लगे... रुको.... रुको.... रुको....

लेकिन हम लोग वहां से भाग लिए....

विंध्याचल देवी के मंदिर से कुछ दूर पहले पुलिस स्टेशन था... वहां हम लोग गए और अपनी पूरी बात बताएं....

 पुलिस वाले हमारी बातों को गंभीरता से नहीं ले रहे थे....

 कोई कह रहा था कि “नहीं अब ऐसा नहीं होता है”....

 तो कोई कह रहा था कि “दूसरे रास्ते से चले जाओ”.....

काफी देर बातचीत होने के बाद एक पुलिस वाले भाई ने कहा कि आप लोग जाइये और हमारा नंबर लीजिए.... कोई दिक्कत होता है तो तुरंत कॉल करें......

मैं मन ही मन सोच रहा था कि “कुछ होने के बाद कॉल कैसे करेंगे”....

एक पुलिस वाले ने किसी को फोन लगाया और पूरी बात बताइ...

तभी एक पुलिस वाले ने काफी गंभीर बात कही......

“यहां से फोन चला गया है आप लोग निश्चिंत होकर जाइए अब कुछ नहीं होगा”

बात की गंभीरता को समझते हुए हम लोग वहां से चले.......

बाइक की स्पीड और तेज कर लिए कुछ ही देर में हम लोग हाईवे पर आ गए....

और फिर आनंद, डकैती और छिनैती  की कहानी सुनाना शुरू कर दिया...... हम भी मजे से उसकी कहानी सुनने लगे.....

लगभग 4:00 बजे हम प्रयागराज पहुंच गए।         

 (बाल बाल बचे)


अभिषेक तिवारी

पानी की टंकी


बात कुछ पुरानी है, उस समय मैं अल्लापुर में रहता था। हमारे गांव साइड से एक लड़का इलाहाबाद में प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने आने वाला था। चूंकी मैं पहले से ही यहां रहता था तो उनके पिताजी ने हम को फोन किया और बोला, बेटा देख लेना पहली बार जा रहा।

मैं सुबह उठकर चाय बना रहा था तभी एक मिसकॉल आया उस समय मेरे पास स्मार्ट फोन नहीं था और मोबाइल में 40 में 40 का टॉकटाइम वाला रिचार्ज कराता था।

मैंने कॉल बैक किया तो उधर से एक लड़का बोला भैया मैं भानु (काल्पनिक नाम) बोल रहा हूं, मैं सारनाथ एक्सप्रेस पकड़ लिया हूं मुझे बैठने के लिए जगह नहीं मिली है। मैंने कहा कोई बात नहीं बनारस में जगह मिल जाएगी, ज्यादा सामान तो नहीं लिए हो उसने कहा नहीं भैया.... एक बैग है और एक बोरी में गेहूं तथा चावल है। मैंने कहा बोरी किसी साइड में लगाओ और उसी पर बैठ जाओ और यहां पहुंचकर मुझे कॉल करना......।

लगभग 3:30 बजे एक मिसकॉल आया, मैंने कॉल किया उधर से आवाज आई भैया मैं स्टेशन आ गया हूं। तो मैंने कहा बाहर निकलो और चुंगी के लिए ऑटो पकड़ लो।

फिर कुछ देर बाद एक मिसकॉल आया मैंने कॉल किया तो उसने कहा मैं चुंगी आ गया हूं..... मैंने कहा किसी ऑटो वाले से बात कराओ। मैंने ऑटो वाले से कहा आलोपीबाग पानी टंकी के पास ईन्हें उतार देना....।

लड़का पहली बार इलाहबाद आ रहा था। इसलिए मैं जल्दी से उसे लेने के लिए निकल गया..... मेरे रूम से 200 से 300 मीटर की दूरी पर पानी टंकी थी।

फिर एक मिसकॉल आया मैंने उसे कॉल बैक किया तो वो बोला भैया पान टंकी के पास खड़ा हूं....... मैं जल्दी से पानी टंकी पहुंचा और चारों तरफ देखने लगा वो कहीं दिखाई नहीं दे रहा था....।

मैंने उसे कॉल किया कहां हो उसने कहा भैया पानी टंकी के दाहिनी ओर खड़े हैं...। मैं जल्दी से पानी टंकी के दाहिनी ओर गया वह वहां भी नहीं दिखा....।

मैं परेशान हो गया कि लड़का कहां चला गया फिर मैं उसे कॉल किया तो वही जवाब दिया भैया में पानी टंकी के दाहिनी ओर खड़ा हूं.....।

मैं मन ही मन सोचा शायद बायां दायां में लगता है कंफ्यूज हो गया है..... इसलिए मैंने पानी टंकी का पूरा भ्रमण किया वह कहीं नहीं दिखा।

गर्मी का दिन था और मैं पसीने से भीग गया था....। मैंने उसे फोन किया और बोला अगल-बगल किसी को फोन दो........

एक सज्जन से बात कराया उन्होंने बताया कि यह स्वर्णिका ज्वेलर्स के पास खड़ा है....। मैं गहरी सांस लिया..... और स्वर्णिका ज्वेलर्स की ओर निकल लिया..... 5 मिनट का रास्ता था।

मैं वहां गया तो देखा कि वह धूप में पीठ पर बैग टांगे हुए तथा पैर के बगल में अनाज की बोरी लिए हुए खड़ा है.......... मैं उसके पास गया और वह मुझ पर भड़क गया..... बोला भैया आप कब से मुझे पानी की टंकी के पास खड़ा करा कर पता नहीं कहां कहां ढूंढ रहे थे......। मैं चौक गया और जब ध्यान से देखा तो पता चला वह मासूम सा चेहरा बनाएं रवि मिष्ठान भंडार के पास रखी पानी टंकी के दाहिनी ओर खड़ा था......... मैं उसी टंकी से एक गिलास पानी निकाल कर मुंह धोया...... पानी पिया....... तथा उसके साथ रूम की ओर चल दिया....

अभिषेक तिवारी

रविवार, 19 सितंबर 2021

एक प्रेम कहानी (विलेन का लव)

 भाग एक

एक प्रेम कहानी (विलेन का लव)  








क्लास 10th का पहला दिन……..


क्लास में सभी लोग छुट्टियों की बातें कर रहे थे... कौन कहां गया, क्या क्या किया, किसको क्या मिला.... इस सभी बातो पर सभी दोस्त बैठकर चर्चा कर रहे थे....


पर मेरी निगाहें किसी को ढूंढ रही थी. उसे देखे 45 दिन हो गए थें... दिमाग में तरह-तरह के ख्याल आ रहे थे... कहीं उसका एडमिशन दूसरे स्कूल में तो नहीं हो गया होगा....फिर खुद को समझाने लगता नहीं नहीं 9th यहाँ से पढ़ी है तो 10th भी यहीं से पढेगी....


मेरे दोस्त मुझसे बातें कर रहे थे, कुछ कह रहे थे.... पर उनकी बातें मुझे पल्ले नहीं पड़ रही थी.. क्योंकि मेरा ध्यान तो कहीं और था... उसे देखने के लिए मेरी व्याकुलता बढती जा रही थी....


अचानक पूरा क्लास शांत हो गया..... क्लास के सभी लोग उसे देख रहे थे.... वो अपनी सहेलियों से मिल रही थी...उसी चंचलता से अपनी सहेलियों से बातें कर रही थी... धीरे-धीरे क्लास सामान्य हो गया…..मेरी आंखें उस पर टिकी की टिकी रह गई...


पूरे दिन मैं उसे देखता रहा..... पर उसने मुझे एक बार भी नहीं देखा.... खैर उसका मुझे ना देखना कोई नई बात नहीं था.... जब वह पहली बार 8th क्लास में आई थी तब से ही मैं उसे देखा करता था... मैं क्या पूरा क्लास उसे देखा करता था... अंतर बस इतना था कि कुछ लोग नोट्स लेने के बहाने या कुछ पूछने के बहाने उसे बात यह कर लिया करते थे.... और मैं उससे कभी बात नहीं करता था..... केवल चुप चुप के देखा करता था...कई लोगों ने उसे अपने दिल की बात बताने की कोशिश भी की पर दाल नहीं गली.... 


मैं प्रतिदिन सज सवार के स्कूल जाता और उसे देखा करता..... इस बार भी लगभग 15 दिनों तक मैं उसे देखता रहा.... जैसा कि मैं पिछले 2 सालों से देखते आ था....मजे की बात यह है कि ये बात मैंने अपने दोस्तों को भी नहीं बताया था.....एकदम ख़ुफ़िया प्यार था... जब भी कोई दोस्त उसके बारे में कुछ बताता तो मैं ऐसे रिएक्ट करता जैसे मुझे इन सब चीजो से कोई फर्क नहीं पड़ता......


धीरे-धीरे मुझे लगने लगा कि ये साल भी मुझे उसे देख देख कर ही बिताना पड़ेगा....प्रतेक साल 15 अगस्त के दिन विद्यालय में भव्य आयोजन हुआ करता था.... जिसमें वो गाना गाने वाली थी.....वहीं होने वाले नाटक में मुझे विलेन का किरदार मिला था...


प्रभात नाम का एक लड़का था जो क्लास में सबसे तेज था..... गाना हो, डांस हो, खेल हो, पढाई हो हर चीज में औवल था...स्कूल के सभी टीचर उसे बहुत मानते थे....आप सोच रहे होंगे की उसके बारे में क्यों बता रहा हूँ...तो जबाब है वो भी गाना गाने वाला था...


रिहल्सल चालू हो गया....वो दोनों साथ ही गाने की प्रेक्टिस किया करते थे.....और हम लोगो की प्रेक्टिस बगल वाली क्लास में हुवा करती थी....जब भी मैं अपना विलेन वाली प्रेक्टिस करने के लिए तैयार होता तभी उधर से उन लोगो का गाना सुनाई देने लगता और मैं खुद को सच में विलेन समझने लगता और किरदार को जिवंत कर देता.....सबको लगता की बहुत अच्छा कर रहन हूँ पर उनको क्या पता कि चोट कही और से लग रहा है...


प्रेक्टिस के दैरान उन दोनों की नजदीकियां बढती गई....और मैं समझ गया की लास्ट में विलेन मारा ही जाता है... खैर ऐसे ही प्रेक्टिस पूरी हो गई..... 


15 अगस्त के दिन मेकप वाला सबको तैयार कर रहा था... लडकियों को दुसरे रूम में मेकप वगैरा हो रहा था..मुझे एक खुखार लुटेरे का किरदार निभाना था...मुझे काले कपड़े पहनाया गया और बड़ी बड़ी मुछे लगाई गई.... और एक लम्बा कला टिका लगाया गया... साथ ही एक नकली रायफल भी दिया गया.....


लगभग सभी लोग तैयार हो गए थे.... अभी मेरे टीम के कुछ लोगो को तैयार किया जा रहा था.... मैं दरवाजे के पास बैठे उसके बारे में सोच रहा था तभी सर बोले आप लोग स्टेज के बगल वाले कमरे में चले....सब लोग अपना अपना सामान ले के चल दिए...


मुझे उसको देखने की बचैनी थी इसलिए मैं अपना रायफल ले के जल्दी से स्टेज वाले रूम के पास पहुच गया....मैंने दरवाजा बजाय और दरवाजा उसी ने खोला और मुझे देखते ही वो जोर से चिल्लाई........सब लोग दौड़ के आये, मैडम भी आई... सभी लोग उससे पूछने लगे क्या हुवा क्या हुवा... किसी ने उसे पानी दिया... वो पानी पी के मेरे ओर अंगुली दिखा क बोली इनको देख के डर गई थी... सभी लोग हसने लगे.... और मैं रूम में लगे सीसे में खुद को देखा...... फिर मैं समझ गया उसका डरना सही था... मैं खुद को ही खुखार लग रहा था...


सबसे पहला गाना उसका और प्रभात का था.... संचालक महोदय दोनों के नाम का अलाउंस किया...वो लाल रंग का ड्रेस पहन राखी थी अब उसे देखने के बाद मेरी धडकने बढ़ने लगी...मै अपना सारा डायलाक भूलने लगा...वो स्टेज पे जाने लगी और प्रभात भी पीछे से स्टेज पे गया...


वो दोनों बहुत ही अच्छा परफार्मेंस दिए.... गाना खतम होने के बाद पूरा मैदान तालियों की गडगडाहट से गूंज उठा...वो दोनों एक दुसरे का हाथ पकडे स्टेज से आये....सभी लोग उन्हें बधाई दे रहे थे... पर मेरा पूरा ध्यान उन दोनों के हाथ पे था.... मैं ईर्ष्या से जलने लगा.... वो लोग काफी देर तक एक दुसरे का हाथ पकडे रहे .....


कुछ देर बाद हम लोगों का प्ले सुरु हो गया..... मैं स्टेज पे था.... मैंने देखा प्ले देखने के लिए वो स्टेज के सामने पहली पंक्ति में प्रभात के साथ बैठी है.... वो प्रभात के कंधे को पकड के उसके कान में कुछ कह रही थी....ये देख के मेरे हृदय में ज्वालामुखी फट गया तथा मेरे अन्दर का असली विलन जाग गया....और मैं उस नकली रायफल को असली समझ के जोर से दहाड़ते हुवे अपना डायलाक बोलना सुरु किया... और तालियों से पूरा मैदान गूंज उठा.... प्ले के दौरान मैं जब जब स्टेज पे आया तब तब अपने खुखार लुक और बेहतरीन अभिनय से वहाँ बैठे लोगों के दिल में खौफ पैदा कर दिया..... पर लास्ट में बुराई का अंत होता है.... प्ले के लास्ट में नायक ने खलनायक को मार गिराया..... जब प्ले में हीरो मुझे मार रहा था तो वो बहुत खुस हो के तालियाँ बजा रही थी........


अभिषेक तिवारी 

नोट (ये मेरी कहानी नहीं है ये एक काल्पनिक कथा है)

गुरुवार, 17 जून 2021

एस्पिरेंट्स वेब सीरीज का रिव्यू

TVF यानी The Viral fever एक मीडिया ग्रुप है जिसने भारत में सबसे पहले OTT series बनाने का गौरव हासिल किया है। जब भी OTT पर लो बजट में हाई क्वालिटी कंटेंट की बात होती है तब TVF का नाम ज़रूर लिया जाता है।

कुछ ऐसी ही हाई एक्सपेक्टेशन और कंटेंट क्वालिटी के साथ मात्र 5 एपिसोड की एस्पिरेंट्स सीरीज का आख़िरी एपिसोड अभी हाल ही में यूट्यूब पर देखा गया है।


कहानी आईएस अधिकारी अभिलाष (नवीन कस्तूरिया) से शुरु होती है जो दिल्ली बस अड्डे पर बोतल को किस तरह से फेंकना चाहिए, ये आम लोगों को बता रहा है। अगले ही सीन में श्वेतकेतु यानी एसके सर (अभिलाष थपलियाल) अपनी अकादमी के नये भर्ती छात्रों को upsc क्लियर करने के गुर सिखा रहे हैं। यहाँ एक अच्छी मोटिवेशनल स्पीच है। अब यहाँ तीसरे लड़के गुरी उर्फ़ गुरप्रीत (शिवांकित सिंह परिहार) की एंट्री होती है जो शादी करने वाला है।

फ़्लैशबैक 2012 में ये तीनों बहुत अच्छे दोस्त होते हैं, तीनों upsc की तैयारी कर रहे होते हैं और तीन में से दो का, अभिलाष और श्वेतकेतु का ये आख़िरी अटेम्प्ट होता है। अब इन पाँच में से चार एपिसोड में इन तीनों (ख़ासकर अभिलाष) की ज़िन्दगी के प्रति एप्रोच, लेडी लक, बैकअप को लेकर स्ट्रगल और फेलियर्स और आपसी झगड़े की कहानी बयां होती है। 

इस कहानी की सबसे बड़ी ख़ूबी ये है कि इससे हर दूसरा स्टूडेंट और हर तीसरा आदमी कनेक्ट हो सकता है। लेकिन सबसे बड़ी ख़ामी ये है कि कहानी पूरी होते हुए भी अधूरी लगती है। प्री-मेन्स और लाइफ में लाइफ कितनी इम्पोर्टेन्ट है, ये बहुत अच्छे से बताया गया है और बहुत चतुराई से ये भी समझाने की कोशिश की गयी है कि प्री-मेन्स भी पार्ट ऑफ लाइफ ही हैं।

डायरेक्शन और स्क्रीनप्ले


डायरेक्शन और स्क्रीनप्ले की बात करते हैं। इसमें क्रिएटर/लेखक अरुणभ कुमार, श्रेयांश पांडे और दीपेश हैं, वहीं डायरेक्शन अपूर्व सिंह कर्की के हाथ में है। अपूर्व काफी समय से TVF से जुड़े हुए हैं। उनका डायरेक्शन बेजोड़ है। नज़रिया बदलने से पहले चश्मा चेंज होना हो या ज़िन्दगी की अप्रोच चेंज करने के लिए सड़क के गड्ढे भरना, एक से बढ़कर एक मेटाफॉर क्रिएट किए हैं। हालाँकि इसका क्रेडिट राइटर्स को भी मिलना चाहिए। स्क्रीनप्ले बहुत टाइट बहुत कण्ट्रोल में है। लव स्टोरी वाला एंगल अच्छा डायरेक्ट तो हुआ ही है, साथ बैकग्राउंड में ‘हमने तुमको देखा, तुमने हमको...’ भी बहुत परफेक्ट बैठता है। फिर आधार कार्ड योजना का मनमोहन सरकार में ज़िक्र करना कहानी को और रेअस्लिस्टिक बनाता है।

डायलॉग्स 


डायलॉग्स की बात करूँ तो ढेर सारे इमोशनल और मोटिवेशनल डायलॉग्स के अलावा दो एक ह्यूमरस डायलॉग्स भी हैं। मुलाहजा फरमाइए –

“मुझे आईएएस इसलिए बनना है क्योंकि मैं चेंज ला सकता हूँ, मुझे चेंज लाना है”

“तूने उसकी आँखें देखीं?” – “हाँ तो तुम भी आँखें ही देखो न चश्में में काहे घुसे हो?”

“और हमारा क्या? यहाँ दिल चाहता है चल रही है? मैं सैफ अली खान हूँ?”
"मुखर्जी नगर के रिलेशनशिप यही छूट जाते है"

एक्टिंग

नवीन पहले भी TVF पिचर्स में अपनी एक्टिंग का जलवा दिखा चुके हैं। यहाँ वो पहले से 21 नज़र आए हैं। अभिलाष ने समा बाँध दिया है। उनके सारे डायलॉग (उपरोक्त मिलाकर) हँसने और सोचने के लिए एक साथ मजबूर कर देते हैं। शिवांकित अपने करैक्टर में जमे हैं। चाय टपरी पर उनकी मोटिवेशनल स्पीच बढ़िया है। नमिता दुबे भी अच्छी लगी हैं, उनका करैक्टर और बढ़ सकता था। मकान मालिक बने कुलजीत सिंह ज़बरदस्त कलाकार हैं, नोटिस हुए बगैर रह ही नहीं सकते हैं। नीतू झांझी ने भी एक सीन में बाजी मारी है।

नुपुर नागपाल का रोल ही लाउड था, उन्होंने ओवरलाउड प्ले किया है, अच्छा है।

सनी हिंदुजा इस सीरीज के श्रीकृष्ण हैं। हर एपिसोड में उनकी ज़रा सी प्रेजेंस भी जान डालने वाली साबित होती है। उनकी लास्ट स्पीच ज़बरदस्त है, पूरी सीरीज का सार है।

तुषार मलिक का बैकग्राउंड म्यूजिक बहुत अच्छा है। दोनों गाने और ख़ासकर ‘मोहभंग पिया’ का रिप्राइज़ वर्शन बहुत अच्छा बना है।

जॉर्ज जॉन और अर्जुन कुकरेती ने सिनेमटाग्रफी में भी बहुत मेहनत की है। चाय के प्याले को दिखाकर सार समझाना हो या नवीन के भीगते वक़्त बैकग्राउंड में खड़े सनी हिंदुजा को ब्लर करना, हर शॉट ज़बरदस्त है।

कुलमिलाकर एस्पिरेंट्स में आपको एक स्टूडेंट लाइफ से जुड़ी फाइनेंशियल छोड़कर हर तकलीफ, हर समस्या मिल जायेगी। कुछ एक के समाधान भी मिल जायेंगे। ज़िन्दगी के प्रति नज़रिया चेंज होने के भी चांसेज़ हैं। लेकिन अगर आपका फोकस है कि ‘प्री और मेन्स क्लियर करने के लिए कैसी पढ़ाई करनी होती है’ ये दिखाया जायेगा, तो आप निराश हो सकते हैं। पढ़ना क्या है और कैसे पढ़ना है इसके लिए स्पोंसर्स ने अनअकैडमी app बनाया है जिसका जमकर प्रचार आप इस सीरीज़ में देख सकते हैं। हाँ, ज़िन्दगी के इम्तेहान में कैसे पास होना है, इसका हल शायद इस सीरीज में मिल सकता है

एक वाइटल कमी जो मुझे नज़र आई वो ये है कि – अंत हड़बड़ी में करने की बजाए करैक्टर अभिलाष के फ्लैशबैक के कुछ मिनट, इसपर फोकस किए जा सकते थे कि जब वो फेल हुआ तो उसे संभालने के लिए दोस्त थे, लेकिन जब वो पास हुआ तब ख़ुशी शेयर करने के लिए कोई भी नहीं था। 

रेटिंग – 9/10*

मंगलवार, 25 अगस्त 2020

सुर्ती का सफर

सुर्ती एक सफर
सुर्ती कहो ,खैनी कहो,तम्बाकू कहो या प्यार से बुद्धिवर्धक  इसके तमाम नाम है।ये अपने अनेकों नाम से नही  बल्कि अपने काम और गुणों से  चाहने वालों के दिलो पर राज करती है । ये समरसता का पाठ पढ़ाने के साथ-साथ आपसी प्रेम व भाई चारा बढ़ाती है।अंजान लोगों से बात करने की प्रेरणा देती है।ऊंच- नीच , जात- पात से दूर अपने दुःख दर्द बाटने का एक माध्यम  है।ये हमारी अकड़ को खत्म कर किसी के सामने हाथ फैलाने को मजबूर कर देती है तो किसी को एक चुटकी दे कर गौरव की अनुभूति भी कराती है ।इसके बारे में वही समझ सकता है जो इसका स्वाद चखा हो।
मै इसे सुर्ती ही कहता हूँ।
सुर्ती खाना शुरु करने से पहले लोग इसे और इसके सेवन करने वालो को नही समझ सकते ,इसको समझने के लिए आपको इसका सेवन करना पड़ेगा नहीं तो आप यही कहेंगे
राजा पिए गांजा , तम्बाकू पिए चोर।
खैनी खाये चूतिया ,थूके चारों ओर।।
‌बात करते है उस देवदूत तुल्य गुरु की जो आपको सुर्ती खाने के लिए प्रेरित करता है ,हाँ जी आप उसे नही ढूंढ सकते वही आपकी प्रतिभा को पहचान कर आपको ढूंढता है जिस प्रकार आप रॉ को नही ढूंढते है आपमें क़ाबिलियत होती है तो रॉ ही आपको ढूंढता है।यदि आप परेशान ,  तनाव  या काम का बोझ लिए है या किसी अन्य नशा को छोड़ना चाहते है या फिर आप मेरी तरह कुछ नई कोशिश करना चाहते है तो आपको जरुरत है एक सहारे की, एक साथी की,  तभी आपके गुरु की इंट्री होती है और वो इस अद्भुत चीज की तारीफ के पूल बाँधकर  इस जड़ी -बूटी को चूने में रगड़ कर आपको देता है।  खाने का तरीका बताता है। आप गुरु की बात को ध्यान से सुनकर सुर्ती को एक चुटकी में दबा के अपने ऊपर वाले या नीचे वाले होठ और दांत के मंसूडो में इसे दबाते है ।
‌इसका असर एक मिनट के अंदर ही दिखने लगता हैं मुंह में तेजी से लार बनने लगता है। कुछ तीख कसाव जैसा  गले में जाने लगता  है ।आपका जी मचलाने के साथ सर घूमने लगता है ,ऐसा प्रतीत होता है मानो आपको ऊल्टी होगी और बहुत लोग तो ऊल्टी कर भी देते है। आपके गुरु आपको संभालते है, पानी , कुल्ला कराते है। आपको एक जगह बैठने या लेटने को कहते है।उपचार के कुछ क्षण बाद आप  सही हो जाते है । इस अनुभव के बाद कुछ डरपोक लोग इसे दोबारा खाने से मना कर देते है। पर असली शेर वही होता है जो कहता है गुरु, ये कमाल की चीज है ।
‌शुरुवाती दौर में इसका सेवन करने पर आपके सामने भिन्न- भिन्न प्रकार की बाधाएं आती है। पर सभी बधाओं को हराकर सुर्ती खाने वाला महापुरुष एक श्रेष्ठ या पेशेवर  सुरतीबाज या खैनीबाज बन जाता है ।
‌प्रारम्भ में इसके सेवन से बार- बार मसूड़े तथा होठ के अंदर का चमड़ा कट जाता है ।जहाँ सुर्ती दबाया जाता है ,वह होंठ फूले होते है जिसकी वजह से पकडे जाने का खतरा बना रहता है।
‌अगर कोई सुर्ती खाने वाला ये कहे कि उसने चोरी नहीं की तो वो झूठ बोल रहा है इससे सुर्ती का अपमान होता है ।जब भी सुर्ती खाने का ताव चढ़ता है, तब सुर्ती किसी भी कीमत में चाहिए वो चाहे दादा जी के चुनौटी से चुराया जाय या पिताजी की थैली से या किसी अन्य से  ।दादा जी के पास बैठ कर उनका पैर दबाते -दबाते धीरे से उनकी चुनौटी में से सुर्ती निकालकर तुरंत वहा से हट जाना और किसी विशेष अड्डे पर जाकर छुपके से इसको खाना एक खतरों का खिलाडी ही कर सकता है।जब भी घर का कोई  व्यक्ति जो पहले से ही खैनी खाता हो ,उसके चुनौटी छोड़ के कही जाते ही पूरे घर वालो के सामने   सुर्ती चुरा लेना आँखों से काजल चुराने जैसा है
‌जैसे ही किसी अन्य सुर्ती खाने वाले को ये पता चलता है कि आपने इस मैदान में नई-नई इंट्री मारी है तो उसकी आपसे एक अलग ही संबंध स्थापित हो जाता है और खेल इशारों का शुरु होता है जैसे ही आप अपने साथी को देखते है और आँख ही आँख आपसी वार्तालाप  हो जाता है और आपका साथी भरे सभा में खैनी बनाकर धीरे से आपको देता है और आप मुह पोछने के बहाने से सुर्ती को अपने होठों के बीच दबा लेते है। किसी को भनक तक नही लगती। आप अपने इस क्रान्तिकारिक काम को कर के मन ही मन खुद को शहंशाह समझने लगते है।इशारों  का खेल कुछ दिनों तक चलता रहता है कभी आँखों से तो कभी होठ को जीभ से उठा के तो कभी हाथ से तो कभी कोड भाषा में।फिर दौर आता है किसी अंजान से मांगने का ,जब भी आप किसी अंजान सुर्ती धारी को देखते है तो आप उससे खुल के सुर्ती मांगते है और वो भी बडे गर्व के साथ आपको सुर्ती देता है और आपसी संवाद शुरु हो जाता है  संवाद किसी भी मुद्दे पर हो सकता है मौसम ,रास्ते ,राजनीती ,समाज के गुण या अवगुण किसी पर भी ।
‌बात धीरे धीरे फैलने लगती है कि फलाने नया-नया सुर्ती खा रहे है ।जब बात किसी सुर्ती खाने वाले को पता चलती है तो ज्यादा भार नही लेता बल्कि आपको अपना साथी समझने लगता है पर जो नही खाते है वही इसको आग की तरह गांव में या मुहल्ले में फैला देते है बात जब छोटे बच्चों तक पहुचती है तो वो आपको ताली पीट के या हथेली पे अंगूठा रगड़ के चिढ़ाते है । धीरे धीरे भनक घर तक पहुचती है जब घर वाले आपसे पूछते है तो आप झूठी कसम खाकर उनको मना लेते है पर ज्यादा दिन के लिए नही ,जब घर वालो को विश्वास हो जाता है कि आप सुर्ती खाते  है तो आपको लाइसेंस मिल जाता है वो भी लर्निंग वाला ।आप अब माँ से ,पिता जी से, दादा जी से मतलब कुछ लोगो के सामने सुर्ती नही खाते ।समय बीतता जाता है और एक ऐसा दिन आता है कि आप अपनी चुनैटी रख लेते है और घर से सदस्य भी आपसे सुर्ती मांग सकते है और आप भी उनसे मांग सकते है । धीरे धीरे आपके दांत काले हो जाते है और लोग आपको देख के ही बता देते है कि आप सुर्ती खाते है ......
‌                                                    अभिषेक तिवारी ☺️☺️

बाल बाल बचे

  बचपन में डकैती तथा छिनैती  की बहुत सारी सच्ची कहानियां सुना था...  वो अलग बात है कि सुनाने वाला उसमें “मिर्च मसाला” लगाकर सुनाता था...  ऐस...