मंगलवार, 28 सितंबर 2021

बाल बाल बचे

 


बचपन में डकैती तथा छिनैती  की बहुत सारी सच्ची कहानियां सुना था...

 वो अलग बात है कि सुनाने वाला उसमें “मिर्च मसाला” लगाकर सुनाता था...

 ऐसा लगता था गांव की ओर आने वाले हर रास्ते पर कुछ लोग छिनैती  करते हैं...

 मैं कई बार उन रास्ते से अकेले आया गया, पर मुझे कोई नहीं मिला..... लेकिन......

 बात कुछ दिन पहले की है...

 हम और हमारे कुछ साथी “काशी भ्रमण” का प्लान बनाएं..

हम लोग प्रयागराज से बनारस के लिए सुबह 4:00 बजे निकल गए...

 दो बाइक थी और हम लोग चार थे..

रास्ते में हंसी मजाक करते हुए तथा रुक रुक के चाय की चुस्की लेते हुए हम लोग 7:00 बजे तक बनारस पहुंच गए... गंगा स्नान किये.... विश्वनाथ जी का दर्शन किये... फिर काल भैरव  का दर्शन किये... फिर भोजन करने के बाद सारनाथ के लिए निकले.... 

 सारनाथ घूमते घूमते हम लोगों को शाम के पांच बज गए ... वापस आते समय दशाश्वमेध घाट पर हम लोग गंगा आरती देखें.... फिर वापस प्रयागराज की ओर निकल लिए....

शहर से बाहर निकलते निकलते 10:00 बज गए थे तभी प्लान बना कि विंध्याचल होकर प्रयागराज चला जाए.... एक बाइक पर मैं और आनंद तथा दूसरी बाइक पर अनुराग और सत्यम भैया बैठे थे...

 जब हम लोग की बाई औराई से विंध्याचल की रास्ते पर गए तो आनंद ने डकैती और छिनैती की कहानी सुनाने लगा.....

रात के 11:30 बज रहे थे.. मैं भी बहुत मजे से उसकी बातें सुन रहा था.. एकदम सुनसान रास्ता.... लग रहा था कि पूरे इलाके में हम लोगों के अलावा और कोई नहीं है...

आनंद की कहानी सुनते सुनते हम लोग  रात 12:00 बजे विंध्याचल देवी के दरबार में पहुंचे.... वहां हम लोगों ने देवी का झांकी दर्शन किया......

वहां से निकलते निकलते रात की 1:00 बज गए थे.. विंध्याचल मंदिर से लगभग 2 किलोमीटर दूरी पर एक पुलिस बूथ था.. वहां तक हम लोग साथ ही थे उसके बाद आनंद ने बाइक की स्पीड बढ़ा दी और हम लोग आगे निकल लिए.... लगभग 2 किलोमीटर आगे चलने पर बाइक की स्पीड 80+था.. 

एकदम सुनसान रास्ता..... रास्ते के दोनों और जंगल तथा झाड़ियां थी.....झींगुर की आवाज तेजी से सुनाई दे रही थी...

अचानक 100 मीटर की दूरी पर कुछ लोग दिखे.. आनंद बाइक धीमे कर दीया और 50 मीटर की दूरी पर बाइक रोक दिया.. वो लगभग 20 से 25 लोग थे.. कोई हाफ पेंट तो कोई केवल लूंगी लपेटा हुआ था...सरीर के ऊपर वाले हिस्से में कोई कपड़ा नहीं था.. कोई कोई बनियान पहने हुवे थे...

सबके हाथ में डंडे थे..... और कुछ लोग पूरे रास्ते पर खड़े हुए थे.... उसमें से कुछ लोग हम लोगों की ओर बढ़ने लगे....... तभी भीड़ में से एक आवाज आई 

इधर आ इधर आ......

हम आनंद से बोले बाइक घुमा.... घुमा जल्दी.... 

आनंद बाइक  घुमाने लगा...तभी  उसमें से दो चार लोग हम लोग के पीछे दौड़े...... 

उसमें से एक बोला..... पकड़.... पकड़..... पकड़.... पकड़...

आनंद बाइक  की स्पीड बढ़ाता गया और हम लोग वहां से निकल लिए....

 हम लोग तेजी से वापस 500 मीटर आए होंगे कि अनुराग और सत्यम भैया दिख गए...... हम लोगों को देखकर उन्होंने भी बाइक रोक दी... हम लोग जल्दी से उन्हें घूमने के लिए बोले और वो  लोग भी बाइक घुमा लिए...... तभी एक लोग और बाइक से आते हुए दिखे और हम लोग को रुकवाने लगे... रुको.... रुको.... रुको....

लेकिन हम लोग वहां से भाग लिए....

विंध्याचल देवी के मंदिर से कुछ दूर पहले पुलिस स्टेशन था... वहां हम लोग गए और अपनी पूरी बात बताएं....

 पुलिस वाले हमारी बातों को गंभीरता से नहीं ले रहे थे....

 कोई कह रहा था कि “नहीं अब ऐसा नहीं होता है”....

 तो कोई कह रहा था कि “दूसरे रास्ते से चले जाओ”.....

काफी देर बातचीत होने के बाद एक पुलिस वाले भाई ने कहा कि आप लोग जाइये और हमारा नंबर लीजिए.... कोई दिक्कत होता है तो तुरंत कॉल करें......

मैं मन ही मन सोच रहा था कि “कुछ होने के बाद कॉल कैसे करेंगे”....

एक पुलिस वाले ने किसी को फोन लगाया और पूरी बात बताइ...

तभी एक पुलिस वाले ने काफी गंभीर बात कही......

“यहां से फोन चला गया है आप लोग निश्चिंत होकर जाइए अब कुछ नहीं होगा”

बात की गंभीरता को समझते हुए हम लोग वहां से चले.......

बाइक की स्पीड और तेज कर लिए कुछ ही देर में हम लोग हाईवे पर आ गए....

और फिर आनंद, डकैती और छिनैती  की कहानी सुनाना शुरू कर दिया...... हम भी मजे से उसकी कहानी सुनने लगे.....

लगभग 4:00 बजे हम प्रयागराज पहुंच गए।         

 (बाल बाल बचे)


अभिषेक तिवारी

पानी की टंकी


बात कुछ पुरानी है, उस समय मैं अल्लापुर में रहता था। हमारे गांव साइड से एक लड़का इलाहाबाद में प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने आने वाला था। चूंकी मैं पहले से ही यहां रहता था तो उनके पिताजी ने हम को फोन किया और बोला, बेटा देख लेना पहली बार जा रहा।

मैं सुबह उठकर चाय बना रहा था तभी एक मिसकॉल आया उस समय मेरे पास स्मार्ट फोन नहीं था और मोबाइल में 40 में 40 का टॉकटाइम वाला रिचार्ज कराता था।

मैंने कॉल बैक किया तो उधर से एक लड़का बोला भैया मैं भानु (काल्पनिक नाम) बोल रहा हूं, मैं सारनाथ एक्सप्रेस पकड़ लिया हूं मुझे बैठने के लिए जगह नहीं मिली है। मैंने कहा कोई बात नहीं बनारस में जगह मिल जाएगी, ज्यादा सामान तो नहीं लिए हो उसने कहा नहीं भैया.... एक बैग है और एक बोरी में गेहूं तथा चावल है। मैंने कहा बोरी किसी साइड में लगाओ और उसी पर बैठ जाओ और यहां पहुंचकर मुझे कॉल करना......।

लगभग 3:30 बजे एक मिसकॉल आया, मैंने कॉल किया उधर से आवाज आई भैया मैं स्टेशन आ गया हूं। तो मैंने कहा बाहर निकलो और चुंगी के लिए ऑटो पकड़ लो।

फिर कुछ देर बाद एक मिसकॉल आया मैंने कॉल किया तो उसने कहा मैं चुंगी आ गया हूं..... मैंने कहा किसी ऑटो वाले से बात कराओ। मैंने ऑटो वाले से कहा आलोपीबाग पानी टंकी के पास ईन्हें उतार देना....।

लड़का पहली बार इलाहबाद आ रहा था। इसलिए मैं जल्दी से उसे लेने के लिए निकल गया..... मेरे रूम से 200 से 300 मीटर की दूरी पर पानी टंकी थी।

फिर एक मिसकॉल आया मैंने उसे कॉल बैक किया तो वो बोला भैया पान टंकी के पास खड़ा हूं....... मैं जल्दी से पानी टंकी पहुंचा और चारों तरफ देखने लगा वो कहीं दिखाई नहीं दे रहा था....।

मैंने उसे कॉल किया कहां हो उसने कहा भैया पानी टंकी के दाहिनी ओर खड़े हैं...। मैं जल्दी से पानी टंकी के दाहिनी ओर गया वह वहां भी नहीं दिखा....।

मैं परेशान हो गया कि लड़का कहां चला गया फिर मैं उसे कॉल किया तो वही जवाब दिया भैया में पानी टंकी के दाहिनी ओर खड़ा हूं.....।

मैं मन ही मन सोचा शायद बायां दायां में लगता है कंफ्यूज हो गया है..... इसलिए मैंने पानी टंकी का पूरा भ्रमण किया वह कहीं नहीं दिखा।

गर्मी का दिन था और मैं पसीने से भीग गया था....। मैंने उसे फोन किया और बोला अगल-बगल किसी को फोन दो........

एक सज्जन से बात कराया उन्होंने बताया कि यह स्वर्णिका ज्वेलर्स के पास खड़ा है....। मैं गहरी सांस लिया..... और स्वर्णिका ज्वेलर्स की ओर निकल लिया..... 5 मिनट का रास्ता था।

मैं वहां गया तो देखा कि वह धूप में पीठ पर बैग टांगे हुए तथा पैर के बगल में अनाज की बोरी लिए हुए खड़ा है.......... मैं उसके पास गया और वह मुझ पर भड़क गया..... बोला भैया आप कब से मुझे पानी की टंकी के पास खड़ा करा कर पता नहीं कहां कहां ढूंढ रहे थे......। मैं चौक गया और जब ध्यान से देखा तो पता चला वह मासूम सा चेहरा बनाएं रवि मिष्ठान भंडार के पास रखी पानी टंकी के दाहिनी ओर खड़ा था......... मैं उसी टंकी से एक गिलास पानी निकाल कर मुंह धोया...... पानी पिया....... तथा उसके साथ रूम की ओर चल दिया....

अभिषेक तिवारी

रविवार, 19 सितंबर 2021

एक प्रेम कहानी (विलेन का लव)

 भाग एक

एक प्रेम कहानी (विलेन का लव)  








क्लास 10th का पहला दिन……..


क्लास में सभी लोग छुट्टियों की बातें कर रहे थे... कौन कहां गया, क्या क्या किया, किसको क्या मिला.... इस सभी बातो पर सभी दोस्त बैठकर चर्चा कर रहे थे....


पर मेरी निगाहें किसी को ढूंढ रही थी. उसे देखे 45 दिन हो गए थें... दिमाग में तरह-तरह के ख्याल आ रहे थे... कहीं उसका एडमिशन दूसरे स्कूल में तो नहीं हो गया होगा....फिर खुद को समझाने लगता नहीं नहीं 9th यहाँ से पढ़ी है तो 10th भी यहीं से पढेगी....


मेरे दोस्त मुझसे बातें कर रहे थे, कुछ कह रहे थे.... पर उनकी बातें मुझे पल्ले नहीं पड़ रही थी.. क्योंकि मेरा ध्यान तो कहीं और था... उसे देखने के लिए मेरी व्याकुलता बढती जा रही थी....


अचानक पूरा क्लास शांत हो गया..... क्लास के सभी लोग उसे देख रहे थे.... वो अपनी सहेलियों से मिल रही थी...उसी चंचलता से अपनी सहेलियों से बातें कर रही थी... धीरे-धीरे क्लास सामान्य हो गया…..मेरी आंखें उस पर टिकी की टिकी रह गई...


पूरे दिन मैं उसे देखता रहा..... पर उसने मुझे एक बार भी नहीं देखा.... खैर उसका मुझे ना देखना कोई नई बात नहीं था.... जब वह पहली बार 8th क्लास में आई थी तब से ही मैं उसे देखा करता था... मैं क्या पूरा क्लास उसे देखा करता था... अंतर बस इतना था कि कुछ लोग नोट्स लेने के बहाने या कुछ पूछने के बहाने उसे बात यह कर लिया करते थे.... और मैं उससे कभी बात नहीं करता था..... केवल चुप चुप के देखा करता था...कई लोगों ने उसे अपने दिल की बात बताने की कोशिश भी की पर दाल नहीं गली.... 


मैं प्रतिदिन सज सवार के स्कूल जाता और उसे देखा करता..... इस बार भी लगभग 15 दिनों तक मैं उसे देखता रहा.... जैसा कि मैं पिछले 2 सालों से देखते आ था....मजे की बात यह है कि ये बात मैंने अपने दोस्तों को भी नहीं बताया था.....एकदम ख़ुफ़िया प्यार था... जब भी कोई दोस्त उसके बारे में कुछ बताता तो मैं ऐसे रिएक्ट करता जैसे मुझे इन सब चीजो से कोई फर्क नहीं पड़ता......


धीरे-धीरे मुझे लगने लगा कि ये साल भी मुझे उसे देख देख कर ही बिताना पड़ेगा....प्रतेक साल 15 अगस्त के दिन विद्यालय में भव्य आयोजन हुआ करता था.... जिसमें वो गाना गाने वाली थी.....वहीं होने वाले नाटक में मुझे विलेन का किरदार मिला था...


प्रभात नाम का एक लड़का था जो क्लास में सबसे तेज था..... गाना हो, डांस हो, खेल हो, पढाई हो हर चीज में औवल था...स्कूल के सभी टीचर उसे बहुत मानते थे....आप सोच रहे होंगे की उसके बारे में क्यों बता रहा हूँ...तो जबाब है वो भी गाना गाने वाला था...


रिहल्सल चालू हो गया....वो दोनों साथ ही गाने की प्रेक्टिस किया करते थे.....और हम लोगो की प्रेक्टिस बगल वाली क्लास में हुवा करती थी....जब भी मैं अपना विलेन वाली प्रेक्टिस करने के लिए तैयार होता तभी उधर से उन लोगो का गाना सुनाई देने लगता और मैं खुद को सच में विलेन समझने लगता और किरदार को जिवंत कर देता.....सबको लगता की बहुत अच्छा कर रहन हूँ पर उनको क्या पता कि चोट कही और से लग रहा है...


प्रेक्टिस के दैरान उन दोनों की नजदीकियां बढती गई....और मैं समझ गया की लास्ट में विलेन मारा ही जाता है... खैर ऐसे ही प्रेक्टिस पूरी हो गई..... 


15 अगस्त के दिन मेकप वाला सबको तैयार कर रहा था... लडकियों को दुसरे रूम में मेकप वगैरा हो रहा था..मुझे एक खुखार लुटेरे का किरदार निभाना था...मुझे काले कपड़े पहनाया गया और बड़ी बड़ी मुछे लगाई गई.... और एक लम्बा कला टिका लगाया गया... साथ ही एक नकली रायफल भी दिया गया.....


लगभग सभी लोग तैयार हो गए थे.... अभी मेरे टीम के कुछ लोगो को तैयार किया जा रहा था.... मैं दरवाजे के पास बैठे उसके बारे में सोच रहा था तभी सर बोले आप लोग स्टेज के बगल वाले कमरे में चले....सब लोग अपना अपना सामान ले के चल दिए...


मुझे उसको देखने की बचैनी थी इसलिए मैं अपना रायफल ले के जल्दी से स्टेज वाले रूम के पास पहुच गया....मैंने दरवाजा बजाय और दरवाजा उसी ने खोला और मुझे देखते ही वो जोर से चिल्लाई........सब लोग दौड़ के आये, मैडम भी आई... सभी लोग उससे पूछने लगे क्या हुवा क्या हुवा... किसी ने उसे पानी दिया... वो पानी पी के मेरे ओर अंगुली दिखा क बोली इनको देख के डर गई थी... सभी लोग हसने लगे.... और मैं रूम में लगे सीसे में खुद को देखा...... फिर मैं समझ गया उसका डरना सही था... मैं खुद को ही खुखार लग रहा था...


सबसे पहला गाना उसका और प्रभात का था.... संचालक महोदय दोनों के नाम का अलाउंस किया...वो लाल रंग का ड्रेस पहन राखी थी अब उसे देखने के बाद मेरी धडकने बढ़ने लगी...मै अपना सारा डायलाक भूलने लगा...वो स्टेज पे जाने लगी और प्रभात भी पीछे से स्टेज पे गया...


वो दोनों बहुत ही अच्छा परफार्मेंस दिए.... गाना खतम होने के बाद पूरा मैदान तालियों की गडगडाहट से गूंज उठा...वो दोनों एक दुसरे का हाथ पकडे स्टेज से आये....सभी लोग उन्हें बधाई दे रहे थे... पर मेरा पूरा ध्यान उन दोनों के हाथ पे था.... मैं ईर्ष्या से जलने लगा.... वो लोग काफी देर तक एक दुसरे का हाथ पकडे रहे .....


कुछ देर बाद हम लोगों का प्ले सुरु हो गया..... मैं स्टेज पे था.... मैंने देखा प्ले देखने के लिए वो स्टेज के सामने पहली पंक्ति में प्रभात के साथ बैठी है.... वो प्रभात के कंधे को पकड के उसके कान में कुछ कह रही थी....ये देख के मेरे हृदय में ज्वालामुखी फट गया तथा मेरे अन्दर का असली विलन जाग गया....और मैं उस नकली रायफल को असली समझ के जोर से दहाड़ते हुवे अपना डायलाक बोलना सुरु किया... और तालियों से पूरा मैदान गूंज उठा.... प्ले के दौरान मैं जब जब स्टेज पे आया तब तब अपने खुखार लुक और बेहतरीन अभिनय से वहाँ बैठे लोगों के दिल में खौफ पैदा कर दिया..... पर लास्ट में बुराई का अंत होता है.... प्ले के लास्ट में नायक ने खलनायक को मार गिराया..... जब प्ले में हीरो मुझे मार रहा था तो वो बहुत खुस हो के तालियाँ बजा रही थी........


अभिषेक तिवारी 

नोट (ये मेरी कहानी नहीं है ये एक काल्पनिक कथा है)

बाल बाल बचे

  बचपन में डकैती तथा छिनैती  की बहुत सारी सच्ची कहानियां सुना था...  वो अलग बात है कि सुनाने वाला उसमें “मिर्च मसाला” लगाकर सुनाता था...  ऐस...